लेखनी प्रतियोगिता -12-Jul-2023 "ग़ज़ल "
ग़ज़ल
ज़माना ख़ुद लुटेरा हैं और मुझको डांकू समझता है।
बिना सच्चाई को जाने और परखे मुझे गुनेहगार समझता है।।
यह कैसा कानून है अंधा जो सुनी सुनाई बातों पर यकीन करता है।
कटघरे में खड़ा मुज़रिम की बातों पर ना वो पैरवी ही करता है।।
यह कैसा इंसाफ़ का तराजू है जो रुतबे और पैसे से तुलता है।
फै़सले का हल्फ़नाम मिनटों में इधर से उधर बदलता है।।
कहने को हमेशा से न्याय का वो मन्दिर कहलाता है।
मग़र क्या हर किसी को सदैव न्याय सच्चा और सार्थक मिलता है।।
भीड़ है चापलूसों की इसलिए न्याय में वक़्त लगता है।
फै़सला आते आते कइयों का तो भरोसा ही उठने लगता है।।
मधु गुप्ता "अपराजिता"
Shashank मणि Yadava 'सनम'
13-Jul-2023 07:25 AM
सुन्दर सृजन और बेहतरीन अभिव्यक्ति
Reply
Madhu Gupta "अपराजिता"
13-Jul-2023 05:11 PM
तह दिल से शुक्रिया और आभार🙏🙏
Reply
Sushi saxena
12-Jul-2023 10:34 PM
Nice 👍🏼
Reply
Madhu Gupta "अपराजिता"
13-Jul-2023 05:11 PM
Thank you so much🙏🙏
Reply
Punam verma
12-Jul-2023 05:06 PM
Nice
Reply
Madhu Gupta "अपराजिता"
13-Jul-2023 05:11 PM
Thank you so much🙏🙏
Reply